सपना मांगलिक की कलम से……हिजड़े की व्यथा
कहते विकलांग उसे जिनका, अंग भंग हो जाता मिलता यह दर्जा मुझको तो, क्यों मैं स्वांग रचाता झूठ वेश खोखली ताली, दो कोठी बस खाली जीता आया नितदिन जो मैं, जीवन है वो गाली। घिन करता इस तन से हरपल, मन से भी लड़ता हूँ कोई नहीं जो कहे तेरा, मैं दर्द समझता हूँ तन-मन … Continue reading सपना मांगलिक की कलम से……हिजड़े की व्यथा
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